प्रकृति की मार से कोई बच न पाया है- कवि रिंकू उपाध्यक्ष

प्रकृति की मार से कोई बच न पाया है- कवि रिंकू उपाध्यक्ष

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प्रकृति का अपना सिस्टम है
उससे कोई बच न पायेगा।

होगा कर्म जैसा वैसा ही
परिणाम आयेगा।

समय की चाल उसकी है
मनुज के समझ से उपर।

गीता ज्ञान है जिसका 
बडा संविधान है जिसका ।

उसके न्याय के परिणाम
का फल समझ न आयेगा।

रोयेगा हसेगा तू
कर्म के परिणाम को पाकर।

मौन लाठी की मार 
तू किसी से कह न पायेगा।

हर पल का लेखा जोखा
तेरा है प्रकृति के पास।

तू यहाँ बच ले पर
वहाँ से बच न पायेगा।

होगा कर्म जैसा
निश्चित वैसा परिणाम आयेगा।


                                          कवि-मानवेन्द्र उर्फ रिंकू उपाध्यक्ष


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