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Jaunpur News : "मैं बिक गया... लेकिन मुझे खरीदने वाला अब तक लापता है!" - पत्रकार अजय पांडेय की कलम से आत्ममंथन।


रिपोर्ट- लक्ष्मण कुमार चौधरी
क्रेडिट- अजय पाण्डेय फेसबुक

"मैं बिक गया...तोहार_कसम" — ये शब्द किसी सस्ती सनसनी के लिए नहीं, बल्कि एक पत्रकार की पीड़ा और तंज भरी प्रतिक्रिया है, जो खुद पर लग रहे 'बिक जाने' के आरोपों से व्यथित है। TV9 भारतवर्ष के पत्रकार अजय पांडेय ने सोशल मीडिया पर एक विस्तृत और मार्मिक पोस्ट के ज़रिए उन तमाम अफवाहों और आरोपों का जवाब दिया है, जो बीते कुछ समय से उनके इर्द-गिर्द गढ़े जा रहे हैं।

● कौन खरीदार था, कौन दलाल...?

अजय पांडेय ने सवाल उठाते हुए कहा:

"मुझे खरीदने वाला कौन था, और किस दलाल ने मुझे बेचा? जौनपुर की जनता को यह हक है जानने का कि मैं कब, किस कीमत पर और किस वजह से बिक गया?"

उनका कहना है कि जो लोग उन्हें कभी निष्पक्ष और ईमानदार पत्रकार मानते थे, वही अब सत्ता परिवर्तन के साथ उन्हें कटघरे में खड़ा कर रहे हैं।


● “ब्रांडेड चश्मा नहीं, 100 रुपये वाला है ये पत्रकारिता का नजरिया”

अपने चश्मे की कीमत तक को प्रतीक बनाकर अजय ने पत्रकारिता की निष्पक्षता पर जोर दिया:

"ये जो चश्मा आप तस्वीर में देख रहे हैं, ये न तो किसी वातानुकूलित स्टोर से खरीदा गया है और न ही किसी ब्रांड का है। यह जौनपुर के ऐतिहासिक शाही पुल पर धूप में खड़े होकर मोलभाव के बाद 140 से घटाकर 100 रुपए में लिया गया है।"

इसी सौ रुपए वाले चश्मे से उन्होंने पूर्ववर्ती सरकारों की खामियों को भी उजागर किया था — चाहे वह पूर्व सांसद धनंजय सिंह हों, पूर्व मंत्री शैलेन्द्र यादव "ललई" या उमाकांत यादव।


● “मैं वही हूं, बस तुम्हारी नजरें बदल गईं”

अजय का स्पष्ट आरोप है कि उन्होंने अपनी पत्रकारिता में कोई बदलाव नहीं किया है, लेकिन सरकार बदलते ही कुछ लोगों की सोच और दृष्टिकोण बदल गया है।

"सरकार बदली, तुम्हारी किस्मत बदली… लेकिन मैं वही हूं, मेरा सौ रुपए वाला चश्मा भी वही है। फर्क बस इतना है कि अब तुम मुझे उसी नज़र से नहीं देख पा रहे।"


● "TV9 का पत्रकार हूं, किसी दल या नेता का प्रवक्ता नहीं!"

अजय पांडेय ने स्पष्ट शब्दों में कहा:

"मैं TV9 जैसे एक सम्मानित न्यूज संस्थान का मामूली सा पत्रकार हूं। मेरी पत्रकारिता किसी व्यक्ति, दल या विचारधारा की गुलाम नहीं है। जो सच है, वही लिखा जाएगा, वही दिखाया जाएगा।"


● "जिसे अफवाह उड़ानी है, उड़ाए… लेकिन मेरी कीमत बताकर दिखाओ"

अपनी बात को व्यंग्य के साथ समाप्त करते हुए उन्होंने कहा:

"जो लोग मेरी बोली लगाकर मेरे चरित्र को नीचे गिराना चाहते हैं, वो पहले ये तो बता दें कि मेरी कीमत कितनी लगाई गई? और वो किसे दी गई?"


● "महादेव सद्बुद्धि दें… वरना बौखलाहट और बढ़ेगी"

अपनी पोस्ट के अंत में अजय पांडेय ने उन सभी लोगों को आत्ममंथन की सलाह दी, जो पत्रकारों पर आरोप लगाकर अपनी कुंठाओं की तुष्टि कर रहे हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि पत्रकारिता में उनका लक्ष्य कभी चाटुकारिता नहीं रहा, और न कभी रहेगा।


● निष्कर्ष:

आज जब पत्रकारिता को लेकर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं, ऐसे समय में अजय पांडेय की यह पोस्ट केवल एक सफाई नहीं, बल्कि पत्रकारिता के मूल्यों की पुनः स्थापना का प्रयास है। यह संदेश है उन सभी को, जो सत्ता के बदलते समीकरणों के साथ अपने नजरिए को भी बदल देते हैं — लेकिन उम्मीद करते हैं कि पत्रकार अपने दृष्टिकोण में अडिग रहे।





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