गांव में काम करने वाली आशा महिलाओं का प्रसव पीड़ा जब शुरू होता है तो वो सरकारी अस्पताल में जाने के बजाय उन्हें बहला फुसलाकर किसी निजी अस्पताल में ले जाती है जिससे प्रसव पीड़ा में महिला और उसके परिजनों से मोटी रकम वसूल की जाती है कई बार तो गरीब परिवार अपनी जमीन आभूषण भी गिरवी रख देता है इलाज के अभाव में कई बार जच्चा बच्चा दोनों की मौत जो जाती है ऐसे में क्या किया जाय कि इन सभी पर लगाम लगे।
यह एक गंभीर मुद्दा है जो ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमियों, आशा कार्यकर्ताओं की अनैतिक प्रथाओं और निजी अस्पतालों की लापरवाही को उजागर करता है। इस समस्या को हल करने के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं, और कुछ हालिया घटनाओं के आधार पर समाधान सुझाए जा सकते हैं।समाधान के उपाय:
- कठोर कार्रवाई और निगरानी:
- आशा कार्यकर्ताओं पर नजर रखने के लिए एक मजबूत निगरानी तंत्र स्थापित करना जरूरी है। स्वास्थ्य विभाग को नियमित जांच और छापेमारी करनी चाहिए, जैसा कि बिसौली (बदायूं) में हुआ, जहां एक आशा कार्यकर्ता को निजी अस्पताल में प्रसव कराने के लिए रंगे हाथों पकड़ा गया और उसके खिलाफ कार्रवाई की गई।
- बांका, बिहार में 13 आशा कार्यकर्ताओं को निजी अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं को ले जाने के लिए चयन मुक्त किया गया। ऐसी कार्रवाइयों को और सख्त करना चाहिए।
- जागरूकता अभियान:
- ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को सरकारी अस्पतालों की मुफ्त सुविधाओं, जैसे जननी सुरक्षा योजना (JSY) और अन्य स्वास्थ्य योजनाओं, के बारे में जागरूक करना जरूरी है। इससे लोग निजी अस्पतालों के बहकावे में नहीं आएंगे।
- आशा कार्यकर्ताओं को भी प्रशिक्षण देना चाहिए कि वे अपनी जिम्मेदारी को नैतिकता के साथ निभाएं और कमीशन के लालच में न पड़ें।
- निजी अस्पतालों पर नियंत्रण:
- निजी अस्पतालों के लिए सख्त नियम और लाइसेंसिंग प्रक्रिया लागू की जानी चाहिए। गोपालगंज और कुशीनगर में निजी अस्पतालों में लापरवाही के कारण जच्चा-बच्चा की मौत के मामले सामने आए हैं।
- ऐसे अस्पतालों पर भारी जुर्माना और लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई होनी चाहिए।
- हड़ताल और लापरवाही पर नियंत्रण:
- समस्तीपुर में आशा कार्यकर्ताओं की हड़ताल के कारण प्रसव पीड़ा से जूझ रही महिलाओं को समय पर मदद नहीं मिली, जिससे जटिलताएं बढ़ीं। सरकार को आशा कार्यकर्ताओं की मांगों को समय पर संबोधित करना चाहिए ताकि ऐसी हड़तालें न हों।
- आर्थिक सहायता और बीमा योजनाएं:
- गरीब परिवारों को इलाज के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करने वाली योजनाओं, जैसे आयुष्मान भारत, को और प्रभावी ढंग से लागू करना चाहिए। इससे परिवारों को अपनी जमीन या आभूषण गिरवी रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
- निजी अस्पतालों में अनावश्यक शुल्क वसूली पर रोक लगाने के लिए एक नियामक संस्था बनाई जा सकती है।
- शिकायत तंत्र और त्वरित कार्रवाई:
- ग्रामीण क्षेत्रों में एक टोल-फ्री नंबर या शिकायत पोर्टल स्थापित करना चाहिए, जहां लोग आशा कार्यकर्ताओं या निजी अस्पतालों की शिकायत दर्ज कर सकें।
- ऐसी शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए, जैसा कि गाजीपुर में आशा कार्यकर्ताओं के कमीशन के लिए निजी अस्पतालों में ले जाने की शिकायतों पर जांच शुरू की गई।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का सुदृढ़ीकरण:
- सरकारी अस्पतालों में बुनियादी सुविधाओं, जैसे प्रशिक्षित डॉक्टर, दवाइयां, और आपातकालीन सेवाओं को बढ़ाना जरूरी है। उत्तराखंड के गांवों में प्रसव के दौरान सुविधाओं की कमी के कारण महिलाओं को दूर जाना पड़ता है, जिससे जोखिम बढ़ता है।
- बांका, बिहार (फरवरी 2025): 13 आशा कार्यकर्ताओं को निजी अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं को बहला-फुसलाकर ले जाने और मोटी रकम वसूलने के लिए चयन मुक्त किया गया।
- बिसौली, बदायूं (मई 2022): एक आशा कार्यकर्ता पूनम को निजी अस्पताल में प्रसव कराने के लिए पकड़ा गया, जिसके बाद सीएमओ को कार्रवाई के लिए रिपोर्ट भेजी गई।
- कुशीनगर, उत्तर प्रदेश (जून 2025): एक निजी अस्पताल में चिकित्सक की लापरवाही से प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा की मौत हो गई।
- गोपालगंज, बिहार: निजी अस्पताल में प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा की मौत के मामले सामने आए, जो लापरवाही और अनैतिक प्रथाओं को दर्शाते हैं।
निष्कर्ष:इस समस्या पर काबू पाने के लिए सरकार, स्वास्थ्य विभाग, और स्थानीय प्रशासन को मिलकर काम करना होगा। आशा कार्यकर्ताओं की जवाबदेही तय करने, निजी अस्पतालों पर सख्ती, और जनता को जागरूक करने से इस तरह की घटनाओं पर लगाम लगाई जा सकती है। साथ ही, सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत करना सबसे महत्वपूर्ण कदम है ताकि लोग निजी अस्पतालों पर निर्भर न रहें।
-